वृक्षारोपण : पथ के साथी
पृथ्वी के शोभाधायक, मानवता के संरक्षक, पालक, पोषक एवं संवर्द्धक वृक्षों का जीवन आज संकटापन्न है। वृक्ष मानवता के लिये प्रकृति प्रदत्त एक अमूल्य उपहार हैं। आइये हम एक वृक्ष लगाकर प्रकृति-संरक्षण के इस महायज्ञ में सहभागी बनें।
Sunday, February 20, 2011
Friday, February 18, 2011
कहाँ गये पेड़ों के रक्षक?
पूनम श्रीवास्तव जी की एक कविता प्रकृति के लिये..............
क्यों प्रकृति लगती खाली?
जहाँ कभी थे झूमते पेड़
और चहुँदिशि थी हरियाली।
जो हमको जीवन देते,
उनकी जान ही खतरे में डाली।
कहाँ गये पेड़ों के रक्षक?
कहाँ खो गये वन-माली?
Thursday, February 17, 2011
पौधे की कहानी, पूनम आर्या की ज़ुबानी
पूनम आर्या ने अपने जन्मदिवस ११ फरवरी को अमरूद का पौधा लगाया था। उनके पौधे की कहानी, सुनिये उनकी ज़ुबानी..........
दो खेतों के बीच है।
नीबू के झुरमुट से देखो,
तो ये सजता खूब है।
वृक्ष मेरा अमरूद है॥
पूरब में छायी जब लाली,
गेहूँ में फूटी जब बाली।
मिट्टी से मूली ने झाँका,
वृक्ष मेरा अमरूद है॥
पालक, सोया, मेथी के संग,
लगा यहाँ पुदीना है।
मिर्ची के बगिया में देखो,
बैगन ताने सीना है।
लाल टमाटर को देखा तो,
वह मुस्काया खूब है।
वृक्ष मेरा अमरूद है॥
कल वहाँ एक कोयल आयी,
फूली सरसों ने ली अंगड़ाई।
इस मंजर को देख,
विहँसी अरहर खूब है।
वृक्ष मेरा अमरूद है॥
अगल-बगल मिट्टी की मेंढ़ी।
दूर-दूर तक खेतों में,
देखो अरहर का फूल है।
वृक्ष मेरा अमरूद है॥
-->टेढ़ी नदी सरयू की सहायक नदी है।
Tuesday, February 15, 2011
Monday, February 14, 2011
पी. एस. भाकुनी जी द्वारा प्रेषित चार सुन्दर पंक्तियाँ
पी. एस. भाकुनी जी ने वृक्ष लगाने वालों का उत्साहवर्द्धन करते हुए चार सुन्दर पद्यमय पंक्तियाँ टिप्पणी स्वरूप प्रेषित की हैं। इसके लिये हम उनके हृदय से आभारी हैं।
सुखमय जीवन ,प्रदूषण रहित , शस्य श्यामला वसुंधरा
तुलसी का पावन एक पौंधा ,आंगन कर दे हरा-भरा
हरी-भरी हो धरती अपनी, महके घर- आंगन अपना
रंग- बिरंगे फूल खिले हों, कितना सुन्दर है सपना ?
तुलसी का पावन एक पौंधा ,आंगन कर दे हरा-भरा
हरी-भरी हो धरती अपनी, महके घर- आंगन अपना
रंग- बिरंगे फूल खिले हों, कितना सुन्दर है सपना ?
बुरांश (एक प्रतीक ) http://pbhakuni.blogspot.com
डॉ. डंडा लखनवी जी के दो दोहे
माननीय डॉ. डंडा लखनवी जी ने वृक्ष लगाने वाले प्रकृतिप्रेमियों को प्रोत्साहित करते हुए लिखा है-
वृक्ष रोप करके किया, खुद पर भी उपकार।
पुण्य आगमन का खुला, एक अनूठा द्वार॥
पुण्य आगमन का खुला, एक अनूठा द्वार॥
इस अमूल्य टिप्पणी के लिये हम उनके आभारी हैं।
http://dandalakhnavi.blogspot.com/नन्हा पौधा
हरा हरा एक नन्हा पौधा ,
लगा मेरे उपवन में |
जिसे देख कर फूल ख़ुशी के
खिलते जाते मेरे मन में |
धूप यह खाता , पीता पानी
यही तो इसका दाना पानी |
बढ़ते बढ़ते बढ़ जायेगा
एक घना वृक्ष यह बन जायेगा |
किसी राह का थका मुसाफ़िर ,
इसके नीचे नींद चैन की सो जायेगा |
लगा मेरे उपवन में |
जिसे देख कर फूल ख़ुशी के
खिलते जाते मेरे मन में |
धूप यह खाता , पीता पानी
यही तो इसका दाना पानी |
बढ़ते बढ़ते बढ़ जायेगा
एक घना वृक्ष यह बन जायेगा |
किसी राह का थका मुसाफ़िर ,
इसके नीचे नींद चैन की सो जायेगा |
-सुनील कुमार जी द्वारा प्रेषित
http://sunilchitranshi.blogspot.com/
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